सुनने पढ़ने वालों के लिए मामूली सी बात है देश में तमाम ओवरब्रिज बने है और बनते रहते हैं । लेकिन इस ओवर ब्रिज की अहमियत इलाके के लोग खास तौर से शाहजहांपुर और बरेली के रहने वाले और डेली अप डाउन करने वाले लोग बक्रॉसिंगहुत बेहतर तरीके से जान और समझ सकते हैं ।बेशुमार मौतों का जिम्मेदार रहा है यह पुल ।
10,,,10 घंटे के लंबे जाम में बहुत से मरीजों ने बरेली पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया। कई बार ऐसी बेबसी और मजबूरी के गवाह हम भी बने हैं जब किसी रिश्तेदार या मिलने वाले को इमरजेंसी इलाज के लिए बरेली लेकर जाना पड़ा और जाम में फंस गए कैसी बेबसी होती थी हर तरफ ट्रक ,,,
निकलने की कोई रास्ता नहीं दौड़ते थे,, आगे जाते थे,,, पीछे जाते थे ,,,
जहां लम्हे काटना मुश्किल होता था वहां घंटे काटना पडते थे ।लेकिन कुछ समझ में नहीं आता था करें तो क्या करें। फिर धीरे-धीरे ट्राफिक रेंगता था किसी तरह क्रॉसिंग तक पहुंचते थे हाथ पैर जोड़कर ट्रक वालों को रुकवाते थे और जैसे तैसे क्रॉसिंग पार करते थे और उसके बाद फतेहगंज के पुल पर लगने वाले जाम में फंस जाते थे फिर धीरे धीरे रेंगते हुए वहां से फतेहगंज का पुल पार करके बरेली पहुंचते थे और अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर यह बताता था कि अब इनमें कुछ नहीं रहा कुछ पहले आ जाते तो शायद कुछ कर पाता।।।।
इस क्रॉसिंग पर यह दर्दनाक इत्तेफाक शाहजहांपुर में रहने वाले बहुत से लोगों के साथ हुआ है।
वैसे तो जिंदगी और मौत अल्लाह के हाथ में है लेकिन इंसानी लापरवाही की वजह से पैदा हुए ऐसे दर्द और बेबसी के लम्हे आज भी भुलाए नहीं भूलते ।
इस क्रॉसिंग ने बहुत से बच्चों को इम्तिहान में नहीं पहुंचने दिया। इस क्रॉसिंग ने बहुत से लोगों को इंटरव्यू में लेट करवा दिया। इस क्रॉसिंग पर लगने वाले जाम ने शादी विवाह की बसो को इस तरह रोका की शाम 6:00 बजे के प्रोग्राम मे बस अगली सुबह 6:00 पहुंच पाई। इस क्रॉसिंग की वजह से बहुत से लोग अपनों के जनाजे में शिरकत नहीं कर पाए उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाए। कहने को तो यह क्रॉसिंग है लेकिन हकीकत में दर्द की एक लंबी दास्तान इसके अंदर छिपी हुई है जो लोग यहां तकलीफ और दर्द से रूबरू हुए हैं वही जान सकते हैं कि उन्होंने यहां क्या खोया है।
शुरुआती दिनों में यहां पानी नहीं मिला करता था फिर धीरे-धीरे गांव वालों ने पानी बेचने का व्यवसाय शुरू किया उसके साथ नारियल खीरा ककड़ी भुट्टे और सर्दियों में चाय भी बिकने लगी हर तस्वीर के दो रुख होते हैं एक रुख तो यह था कि लोग जाम में फस कर परेशान होते थे दूसरी तरफ आसपास के क्षेत्र के लोगों ने चाय पानी खीरा ककड़ी चिप्स वगैरह बेचना शुरू किया जिससे उनको एक रोजगार मिल गया और जाम में फंसे लोगो को कुछ सहूलत।
पुलिस की ड्यूटी भी मुस्तैदी से रहती थी लेकिन जाम खुलवाने के लिए नहीं बल्कि वीआईपी और अधिकारियों को जाम से जल्दी निकालने के लिए और उसके बाद ट्रकों और डग्गामार से वसूली के लिए। परेशानियां बहुत उठाई गई लोग बहुत परेशान रहे लेकिन अच्छी बात यह है कि हम लोग सभ्य है शांत है इतने शांत इतने सभ्य कि हम आपस में झगड़ा करते हैं धर्म के नाम पर भी लड़ जाते हैं लेकिन हम शासन प्रशासन के खिलाफ कभी भी एकजुट होकर आवाज नहीं उठाते इसलिए इतना सब कुछ होने के बाद भी कभी जनता ने इस मामले को लेकर कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया ,,, क्योंकि जो परेशानी और दिक्कत सबके साथ हो उसमें हम क्यों बोले और अपनी इसी सोच कि कीमत,, हम और हिंदुस्तान का हर नागरिक ,हर कदम पर,, हर मोड़ पर अदा करता रहता है । लेकिन हमारी आंखें नहीं खुलती ।खैर एक बहुत बड़ी समस्या थी हुलासनगरा रेलवे क्रॉसिंग । जो भी समय लगा जैसे भी हुई लेकिन शुक्र है यह समस्या आज खत्म हो गई।कुछ साल बाद आने वाली नस्लों को पता भी नहीं होगा कि इस क्रॉसिंग पर हम लोगों ने कैसी-कैसी दिक्कतें और परेशानियां उठाई है जैसे कि आज हम लोगों को नहीं पता होता कि हमसे पहले लोगों ने अपने समय में सड़कें और पुल बनवाने के लिए कैसे-कैसे आंदोलन करें हैं कैसी कैसी कुर्बानियां दी हैं आज तो हम मजे से गाड़ी में फर्राटे भरते हुए निकल जाते हैं लेकिन उस सड़क की मिट्टी और पत्थरों में कितने लोगों की कुर्बानियां दफन है यह हम नहीं जानते और ना ही जानना चाहते हैं।हालांकि इस पुल की एक सच्चाई और हकीकत यह भी है की शाहजहांपुर से बरेली तक फोरलेन का ज्यादातर काम कंप्लीट हो चुका है पुल को अगर अब भी शुरू नहीं करवाया जाता तो आगे बने हुए टोल टैक्स गेट पर वसूली मुश्किल थीं। इसलिए हमें शुक्र अदा करना चाहिए टोल टैक्स का जिसकी वजह से कुछ महीनों या कुछ साल पहले ही इस महान ,,हुलासनगरा रेलवे क्रॉसिंग ओवर ब्रिज ,,,की सौगात या भीख हमें मिल गई। यह बात अलग है कि दो-तीन साल में पूरे होने वाले काम को पूरा होने में 11 साल लग गए इतना अधिक समय क्यों लगा इसका जिम्मेदार कौन है । इसके लिए कोई चेहरा सामने नहीं आएगा लेकिन हकीकत यह है की पुल के बनने में इतनी ज्यादा देरी के लिए संबंधित विभाग को जनता से माफी मांगना चाहिए लेकिन माफी मांगना तो दूर कोई इस बात का एहसास भी नहीं करेगा कि उनकी लापरवाही की जनता को क्या क्या कीमत अदा करना पडी बल्कि कल उद्घाटन के वक्त सीना चौड़ा करके कुकरमुत्तो की टीम अपनी पीठ खुद ठोकने के लिए खड़ी दिखाई देगी।।।