शाहजहाँपुर-UP/”उत्सव -ए- रंगमंच ” में शाहजहाँपुर के रंगकर्मियों का सहारनपुर में चला जादू ,चित्राली थिएटर फाउंडेशन के अध्यक्ष मोहम्मद फाजिल खान ने बताया कि भुवनेश्वर के जीवन की अस्थिरता को समझने के लिए 1930 से 1945 तक के संघर्षशील, द्वंदपूर्ण वातावरण को समझना जरूरी है यह पूरे फलक पर बहुत कुछ विपन्नता का , भीतर तक आंदोलित होने का दौर था । अंग्रेजी शासन ने जिस तरह देश का भयानक शोषण और दमन कर डाला था, उसमें सबकुछ डूब गया । पूंजीवादी भी और साम्राज्यवादी भी, आम आदमी भी ।उस समय मध्य वर्ग की स्थिति सबसे दारुण थी ।इस मध्यवर्ग का भोक्ता स्वयं लेखक भी था ! क्यों भुवनेश्वर एक जगह टिक कर नहीं बैठ सके ? उस बदलते समय समाज के बीच उठने वाले प्रश्न को लेकर भी वह बहुत बेचैन थे और अपनी विपन्नता से भी भुवनेश्वर बहुत स्पष्ट थे के प्रतिभाशाली लेखक का अधिकार है कि समाज उनके लिए कुछ करें अगर लेखक अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ निचोड़ कर देता है तो क्या समाज का कर्तव्य नहीं है कि वह प्रतिभाशाली लेखक का सम्मान करें । इसी बात को समझते हुए नाट्य निर्देशक सलोचना कार्की ने भुवनेश्वर की पीड़ा को समझा और मीरा कांत की लेखनी ने जो दर्द बयां किया है भुवनेश्वर का वो अद्बुध् है किस तरह लेखक ने भुवनेश्वर के पूरे साहित्य को उठाकर एक नाटक रचा जिसका नाम है “भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर ” इसको पढ़कर उनको लगा कि मुझे कुछ भुवनेश्वर पर करना चाहिए तब जाकर उन्होंने यह नाटक भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर चुना और इसका सफलतापूर्वक मंचन सहारनपुर में किया गया।जिसमें मंच पर अभिनय करने वालों में कलाकारों के नाम है कप्तान सिंह “कर्णधार “, मो फाज़िल खान , अतिफा ज़रिफ , अभिशान्त् पाठक, सचिन कुमार, संजीव राठौर, दुष्यंत श्रीवास्तव,आदि तथा मंच परे कलाकारों में मोहम्मद उमर, नौशाद अंसारी ,शिल्पा सक्सेना, इरफान अहमद, चित्राली, मुकेश मानव , नैन सिंह ,फैजान अहमद खान आदि ।