शाहजहाँपुर-2017 के बाद का दशक, गाय जैसे सीधे साधे पशु की दुर्गति के लिए जाना जायगा क्यूंकि जहाँ इनके आशियाने बनाने के लिए सरकारी खजाने से कोरोड़ो रुपया पानी की तरह बहा दिया गया तो वहीं उनकी आबारगी और भूख प्यास ने किसानो की फसलो को जम कर नष्ट किया जिसके चलते गौवंश को किसानो की क्रुरता का सामना करना पड़ रहा है!गौवंश प्रेमी क्षेत्रो में सरकारी स्तर से अलग हट कर भले ही पुरानी जर्जर गौशालाओं की मरम्मत करा कर उन्हे आसरा दिया दिया गया हो बरना सरकारी स्तर की गौशालाओं की हालत शायद ही किसी से छिपी हो! सरकारी और गैरसरकारी गौरक्षक संगठनो का इतना खौफ बढ़ गया कि आमतौर पर गौपालको को घर में बंधी अपनी गायो तक को खोल कर आजाद करना पड़ गया!जिले की तहसील तिलहर के खण्सार से मिली तस्बीरे ही मात्र प्रमाण नही बल्कि शहर नगर गांव में आज भी गली गली भूख प्यास में भटकते गौ वंश नज़र आते हैं! गौशालाओं में मौजूद गाय को ठीक से खाना नही मिल पा रहा है यह उनकी हालत स्वंय ही बैया कर रही है और लोग 1000 के लालच में गौशाला से गाय घर ला कर फिर आजाद कर देने की फिराक में लगे रहते हैं! चुनावी रण नीति कर बड़ी जीत दिला कर प्रदेश का ताज पहनाने वाले गौवंश प्रेमी ही आखिर उन्हे क्यूं नज़र अंदाज़ किए हुए हैं यह तो पता नही लेकिन स्थानीय स्तर से भी गौप्रेम सिर्फ मीडिया तक ही सिमित नज़र आता है!