बहुत मोटी सी बात भी छोटे शब्द में दिमाग़ में नही फंसती क्यूंकि हालात ही इस तरह से दर्शाए गए होते हैं! पेट्रोल खरीद पर जहाँ महंगाई के नाम पर मूल्य बढ़ रहा है तो वहीं कम्प्यूटरीकृत पेट्रोपम्प आपकी आँखो के सामने दिन भर में हजारो ग्राहको से लाखो रुपया चोरी करके पैदा करता है परन्तु आप कुछ नही कर सकते!जैसे 1 लीटर पेट्रोल की कीमत मशीन पर 99:41 पैसे दिखा रही है! आप 1 लीटर पेट्रोल लेते है तब 100 रुपया देना पड़ता है और 100 रूपये का खरीद पर पेट्रोल 1 लीटर ही मिलता है, इस खरीद पर ग्राहक 59 पैसे का नुकसान उठाता है! सिस्टम में केल्क्यूलेटिंग कैसे जंप करता है यह पता लगाते ही जबाब मिलता है कि सिस्टम में फीड है!
99,129, या कि भी एैसी मूल्य की हर खरीद पर एक रुपये का सीधा नुकसान ग्राहक को खुली आँखो पर उठाना लाजिम है, जबकि अंकित मूल्य पर बिक्रेता बार्गनिंग बिल्कुल पसंद नही करता! हाँ कभी कभी यह देखने में जरूर आ जाता है कि माल की शॉर्टेज के नाम पर अंकित मूल्य से अधिक पर माल खरीदना पड़ता है!सिस्टम का झोल यानि नुकसान होने वाले 1 रुपया, जिसे अक्सर हम यह सोच कर तसल्ली कर लेते हैं कि चलो एक रुपया क्या है! इस एक रुपये की नही बल्कि पंचास नये पैसा बचत की कमाई समझने की जरूरत है! किसी भी गारमेंट्स फैक्ट्री में सूट की कास्टिंग पर कपड़े की एबरेज एक मास्टर 1 मीटर 50 सेंटीमीटर निकालता है लेकिन और बचत की नियत पर दूसरा मास्टर 1 मीटर 45 सेंटीमीटर निकाल ही नही लेता बल्कि उतने में गारमेंट तैयार भी करके दिखाता है! पहले मास्टर की एबरेज पर 10 पीस की प्रोडक्शन के लिए कम्पनी ने 15 हजार मीटर कपड़ा खरीद लिया लेकिन तय पीस मूल्य के बाद भी और अधिक कमाई के लिए दूसरे मास्टर की एबरेज में 5 सेंटीमीटर कपड़े की बचत करते हुए पीस में 1-45 सेंटीमीटर की एबरेज प्रयोग पर 14500 मीटर कपड़ा कटिंग कर 500 मीटर कपड़े की बचत कर ली गई, यानि यदि कपड़े की कीमत 100 रुपया मीटर मान ली जाए तो कम्पनी ने बड़ी आसानी से 50 हजार रुपये की बचत कर ली!लगभग पर चलता कल्क्यूलेशन जो बड़ी आसानी से आँखो से काजल चुराते हुए कारोबार बढ़ाने में लगा है और जी तोड़ मेहनत यानि 8 घन्टे, 12 घन्टे, 18 घन्टे मेहनत कर की जाने वाली कमाई को खर्च करते समय एक रुपया सिर्फ यह सोच कर छोड़ दिया जाता है कि चलो कोई बात नही, आखिर रुपये क्या बनता है, आज कल एक रुपया तो बच्चो भी नही लेते, भिखारी भी नही लेते आदि तमाम शब्द हैं जिनके कारण किसी न किसी रूप में ग्राहकको की जेब से निकल कर सिस्टम के बनाए जाल में फंसता हुआ कारोबार की ओर सरक जाता है!एक रुपया कम हो बस में टिकिट नही मिलता, एक रुपया कम हो तो ट्रेन और जहाज आदि किसी का भी टिकिट नही मिलता, एक रुपया कम हो तो पम्म पर तेल नही मिलता, एक रुपया कम हो तो राशन नही मिलता लेकिन जेब से एक रुपया अधिक, ग्राहक की आँखो से सामने पूरी तरह मुफ्त में निकाल लिया जाता है! यानि कि कहा जा सकता है कि तुम्हारे पैसे का अब नही रहा मोल, सिस्टम में एैसा किया गया है झोल!